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नाटक-एकाँकी >> नर-नारी

नर-नारी

नाग बोडस

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17313
आईएसबीएन :9788170556268

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"लोचनदास की धरती पर, दीवानगी का रंग अनोखा!"

एक

[गाँव के बाहर बाबा लोचनदास की समाधि। औरतों का भेस रखे कुछ आदमी नाचते-गाते हैं। इनमें कान्ता उर्फ कान्तीलाल, कमला उर्फ कमलसिंह, बल्लो उर्फ बल्ली भी हैं।]

एक : तुरुप चाल चल दीनी रे बाबा, हम हो गईं दीवानी।

सब : (दर्शकों को सम्बोधित कर) लगे तुम्हें नादानी रे लोगो, हम हो गईं दीवानी।

एक : आठ बार मेरा जियरा धड़का

भोरें धड़का संजा को धड़का

सब : लोचनदास की रानी रे देवर, मैं हो गई दीवानी।

सब : लोचनदास की रानी रे भैया, हम हो गईं दीवानी।

बात बहुत है पुरानी रे भैया, हम हो गईं दीवानी।

एक : बीच गाँव में रुके बराती

माँगन लगे सुन्ने का हाथी

लिख भेजी समधी घर पाती

तब निकला भड्डरी देहाती

गज भर फैंटा दुइ गज छाती

दाँत मूँछ जैसे तेज दराँती

डर डर गये मतलब के नाती

कि ये तो लोचनदास की धरती

उल्टे भागे बराती रे दद्दा, हम है गईं दीवानीऽऽ

सब : सादी तुरत करानी रे ताऊ, हम हो गईं दीवानी।

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